श्री राम का रित्र प्रत्येक मानस में उतर जाए एवं घट में रामचरितमानस साकार हो उठे-गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी

श्री राम का रित्र प्रत्येक मानस में उतर जाए एवं घट में रामचरितमानस साकार हो उठे-गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी


 श्री राम का रित्र प्रत्येक मानस में उतर जाए एवं घट में रामचरितमानस साकार हो उठे-गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी 

(संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान)

भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ- भगवान श्री राम का जीवन चरित्र समस्त मानवजाति के लिए प्रेरणा का स्रोत है। शब्द राम (RAM) का तो विस्तार ही- Right Action Man है अर्थात् सदा उचित कृत्यों को करने वाला व्यक्तित्व! सद्गुणों से परिपूर्ण श्रीराम का अनुसरण करके ही मानवता श्रेष्ठता को छू सकती है। वास्तविकता तो यह है कि राम के चरित्र को धारण कर हर क्षेत्र में सफलता के गगनचुंबी लक्ष्य पाए जा सकते हैं। रघुनंदन स्वयं इन गुणों व संस्कारों को अपनी सफलता का आधार बताते हैं। गोस्वामी तुलसीदासकृत रामचरितमानस के लंकाकाण्ड में इसका सटीक विवरण मिलता है। जिस समय लंकापति रावण अस्त्र-शस्त्रों से लैस मायावी रथ पर आरूढ़ होकर युद्ध के लिए पहुँचा, तो उसे देखकर विभीषण जी के मानस पर चिंता की लकीरें उभर आईं। उन्होंने देखा कि उनके भ्राता रावण तो ऐश्वर्य व संसाधनों से सुसज्जित हैं, पर प्रभु श्री राम साधन विहीन, रथ विहीन भूमि पर खड़े हैं। यही देखकर वे विचलित हो उठे। भक्त वत्सल श्रीराम ने विभीषण को धीरज बंधाते हुए कहा- हे मित्र! आध्यात्मिक गुणों के बल पर ही मैं रावण को परास्त करूँगा। जिस रथ पर आरूढ़ होकर सफलता प्राप्त होती है, वह तो गुणों का रथ है। आगे रघुवर ने इस गुणों से परिपूर्ण रथ का विस्तृत वर्णन किया। उन्होंने विभीषण जी को समझाते हुए कहा- शौर्य और धीरज ही मेरे रथ के पहिए हैं। सत्य और शील इसकी दृढ़ ध्वजा और पताका हैं। इस रथ के चार घोड़े हैं- बल, विवेक, दम (इन्द्रियाँ शमन) और परोपकार। ये घोड़े क्षमा, कृपा और समता की रस्सी से रथ में जुते हुए हैं। ईश्वर का नाम-भजन ही इसका कुशल सारथी है। वैराग्य तन का कवच है, ढाल है। संतोष ही मेरी तलवार है। पुण्यमय दान ही फरसा है और बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है। साथ ही, श्रेष्ठ विज्ञान धनुष है।... विशुद्ध व अचल मन तरकस की भाँति है। मन पर नियंत्रण, यम, नियम आदि- ये सभी बाण हैं। गुरुदेव का पूजन व वंदन ही अभेद्य कवच है। अतः इन सभी विशेषणों को धारण करना ही सफलता का मर्म है। इसके अतिरिक्त विजय का कोई और उपाय नहीं है।

आइए, मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के गुण-सागर से कुछ गागर हम अपने लिए भरते हैं।

सम अवस्था- श्री राम ऐसे उत्तम पुरुष हैं, जिन पर परिस्थितियों का प्रभाव नहीं पड़ता। प्रभु के इसी सद्गुण का बखान करते हुए कहा गया (अयोध्याकाण्ड/2)- रघुकुल को आनन्दित करने वाले श्रीराम के मुख की शोभा मंगलप्रदायिनी है। उनके कमल रूपी मुख पर न तो राज्याभिषेक का समाचार सुनकर प्रसन्नता की रेखा उभरी और न ही वनवास का श्रवण कर विषाद के चिह्न प्रकट हुए। अतः उन्होंने ऐसे समत्व स्थित योगी का आदर्श स्थापित किया, जिसने परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर ली।

विनम्रता व दृढ़ता का समन्वय- श्री राम के आचरण में शालीनता व वाणी की मधुरता के साथ-साथ शौर्य, पराक्रम व दृढ़ता भी कूट-कूट कर भरी है। वे एक साथ दोनों गुणों को धारण करते हैं। यह तथ्य अति विलक्षण है। बालकाण्ड में अंकित श्रीराम और परशुराम वार्त्ता इसी शौर्यपूर्ण शालीनता व शीलयुक्‍त दृढ़ता को दर्शाती है। जोसेफ जोबर्ट के शब्द हैं- ‘Politeness is the flower of humanity- विनम्रता मानवता का पुष्प है।’ पर श्री राम की शालीन शूरवीरता मानवता से आगे पूर्णता की परिचायक है।

अदम्य आत्मविश्वास- जटायु को रघुनन्दन द्वारा कहे गए वचन उनके अदम्य आत्मविश्वास के द्योतक हैं (अरण्यकाण्ड-31)- है तात! आप परलोक में जाकर सीता हरण का समाचार पिता दशरथ को न दें। क्योंकि यदि मैं राम हूँ, तो आपको विश्वास दिलाता हूँ कि लंकापति रावण कुटुम्ब सहित मृत्यु को प्राप्त होकर परलोक वासी होगा और स्वयं सारा विवरण दशरथ जी को सुनाएगा। ऐसा ही हुआ। रावण, उसके भाई और उसके पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुए। तीनों लोकों को जीतने वाला रावण भी परलोक सिधारा। असंभव भी संभव हो गया। ऐसे अद्भुत साहस और आत्मविश्वास के धनी थे श्री राम।

सारतः आदर्श चरित्र श्री राम उक्त वर्णित सभी गुणों के स्वामी थे। उन्होंने अपनी विभिन्न लीलाओं द्वारा धर्म के इन लक्षणों व गुणों को समाज के समक्ष रखा। ताकि मानव इनसे प्रेरणा प्राप्त कर सद्गुणों को अपने आचरण में ढाल सके। इसीलिए हमारा परम कर्तव्य है कि हम केवल राम को माने ही नहीं, अपितु उन्हें तत्त्वतः जानकर उनके चरित्र को अपने व्यवहार में ढालने का प्रयास करें। राम का चरित्र हमारे मानस में उतर जाए और प्रत्येक घट में रामचरितमानस साकार हो उठे।

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